द सांप्रदायिक स्टोरीज

नई दिल्ली : कुछ दिनों पहले बीबीसी ने गुजरात दंगो के उपर एक डाक्यूमेंट्री बनाई थी । उसे केंद्र सरकार द्वारा भारत में प्रदर्शन पर बैन किया गया । कश्मीर फाईल के बाद अब देश में नफरत को बढावा देने केरला स्टोरी हाजीर है । भारत के लोंगो का दुर्भाग्य है की, अब उन्हें खुलेआम झुठ परोसा जा रहा है । इसे रोकने के लिए कोई ताकत अब बची नही है । 

केरला स्टोरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी ।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फिल्म को सेंसर बोर्ड से मंजूरी मिली है इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस मामले मों हस्तक्षेप नहीं करेगा । वहीं मद्रास हाई कोर्ट ने गुरुवार को फिल्‍म पर बैन लगाने से इनकार कर दिया है । जस्‍ट‍िस एडी जगदीश चंदिरा और जस्‍ट‍िस सी. सरवनन की बेंच ने सुनवाई के बाद साफ शब्‍दों में कहा है की सुप्रीम कोर्ट की तरह वह भी केस को खारिज कर रहे हैं ।

सच्चाई के नाम पर इस्लामोफ़ोबिक कंटेंट को बडे स्तर पर दिखाया जा रहा है । सेंसर बोर्ड में इतनी ताकत नही की ऐसी सांप्रदायिक फिल्मों को रोक सके । मिशन 2024 के लिए फुल स्पीड से काम हो रहा है । 

"अगर इनकी आत्माएं अपने धर्म के प्रति इतनी सजग होती तो कोठियों पर बैठी अपनी धर्म की बहनों को खुला नही छोडते"  उनको किसी के हवस का शिकार नही होने देते । बस यह सब राजनिती के लिए जनता के साथ खेली जा रही भावनात्मक राजनिती है । 

फिल्म के डायरेक्टर ने एक मीडीया माध्यम को इंटरव्यू देते हुए कहा है की, यह फिल्म राज्‍य के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए तथ्यों पर आधारित है । उनका दावा है की वे कुछ सच्चाई उजागर कर रहे हैं । जबकि ऐसा बिल्‍कुल नहीं है । पुर्व मुख्यमंत्री ने डायरेक्टर के इस दावे को खारिज कीया है । 

जबकि फिल्म के ट्रेलर ने शुरू में दावा किया गया था कि यह 32,000 महिलाओं की दिल दहला देने वाली कहानियों’ पर आधारित है । जो कथित रूप से आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गई थीं ।  युट्यूब पर ट्रेलर को बड़े पैमाने पर देखा गया, लेकिन बाद में यह दावा किया गया कि यह फिल्म ‘केरल के विभिन्न हिस्सों की तीन युवा लड़कियों की सच्ची कहानियों पर आधारित है । 

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी आपत्ति जाहिर की है । उन्होंने फिल्म की कहानी को संघ परिवार की झूठ की फैक्ट्री का उत्पाद बताया है ।

कूछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों को निर्देश दिया था की, सांप्रदायिक आधार भड़काऊ बयान देने वाला जिस भी धर्म का हो, उस पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए । ऐसे बयानों पर पुलिस खुद संज्ञान लेते हुए मुकदमा दर्ज करे । इसके लिए किसी की तरफ से शिकायत दाखिल होने का इंतज़ार न किया जाए । कोर्ट ने यह भी कहा था कि कार्रवाई करने में कोताही को अवमानना माना जाएगा ।

दिल्ली पुलिस ने कुछ सालों पहले शाहीन बाग, जामिया मिलिया और किसान आंदोलन कर रहे किसानों के साथ मारपीट की थी । तब कुछ लोग अपनी खुशी का इजहार कर रहे थे । अब उनमे से कुछ लोग दिल्ली के जंतर-मंतर पर आंदोलन कर रहे है । उनसे भी एक-दो दिन पुर्व दिल्ली पुलिस ने अपना सही रूप दिखाया है । याने वह कह रहे की, उनकी भी कुटाई हुई है । याने गलत बातों को छुट देने पर वह तुम तक पहुंचने में देर नही लगती । अब तुम खुशी मनाओ या मातम तुमपर पुर्णरूप से निर्भर है ...

अब ऐसे इस्लामोफ़ोबिक फिल्मों को खुली छुट दी जा रही है । यह समय उल्टा भी हो सकता है । तब मातम मनाने के अलावा कोई और उपाय नही रहेगा । इन्सान को हर चीज अनुभव नही करनी चाहिए ! 

ऐसे चीजों से समाज में जागृती नही विनाश फैलता है । जनता कुछ तय नही कर सकती । इस झुठ के सैलाब में  जनता भावनात्मक रूप से कमजोर हो चुकी है । बाकी आप तय करे - क्या करना है ... हम तो

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