पार्थ पवार जमीन घोटाला: क्या बीजेपी बचा रही है?





खड़े बोल/ टीम 

मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति में “महार वतन भूमि” से जुड़े भूमि प्रकरण ने नया मोड़ ले लिया है। राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार के पुत्र पार्थ पवार का नाम इस मामले में सामने आने के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ गई है। विवादित भूमि सौदे को रद्द किए जाने के बाद अब पार्थ पवार से (उनकी कंपनी से) 42 करोड़ रुपये राशि जमा कराने का आदेश जारी हुआ है। इसके बावजूद, मुख्य दोषियों पर ठोस कार्रवाई न होने से जनता अनेक प्रश्न पूछ रही है।


📍 यह पूरा मामला है क्या?


मामला पुणे के मुंढवा क्षेत्र की लगभग चालीस एकड़ “महार वतन” श्रेणी की सरकारी भूमि से जुड़ा है। “महार वतन” वह श्रेणी है जिसकी भूमि पर समुदाय का अधिकार माना जाता रहा है और जिसे निजी स्वामित्व में स्थानांतरित करने पर कड़ी शासकीय प्रक्रिया लागू होती है।


आरोप है कि इस सरकारी भूमि को कई गुना कम मूल्य में निजी हाथों में दिया गया। यह भी कहा गया कि इस सौदे में शासकीय प्रक्रिया, अनुमति और जाँच की अनदेखी की गई।


👤 पार्थ पवार का नाम क्यों आया?


जिस निजी संस्था के माध्यम से यह भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया हुई, उसमें पार्थ पवार की भागीदारी सामने आई। बताया गया कि भूमि सौदे के कागज़ तैयार करवाने और दस्तावेज़ पंजीकरण की प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई तथा शासकीय नियमों का पालन नहीं किया गया।


भूमि सौदा रद्द करने के बाद अब निर्णय हुआ है कि सौदा रद्द होने से पूर्व संबंधित संस्था को लगभग 42 करोड़ रुपये की राशि (स्टाम्प शुल्क तथा अन्य प्रभार) शासकीय कोष में जमा करनी होगी। केवल इतना कर देने से क्या मामले का अंत हो जाएगा? यही बड़ा सवाल है।


⚖️ कार्रवाई कहाँ अटकी हुई है?


अब तक की स्थिति इस प्रकार रही—


पुणे के एक तहसीलदार को इस प्रकरण में अनियमित आदेश पारित करने के आरोप में निलंबित किया गया। भूमि सौदे को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की गई। कुछ अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया है।

लेकिन मुख्य निर्णयकर्ताओं और राजनीतिक स्तर पर अब तक कोई कठोर कार्रवाई नहीं दिखी। यही कारण है कि जनता का संदेह गहराता जा रहा है।


🧨 सवाल सत्ता पक्ष पर भी


इस समय महाराष्ट्र में सरकार भाजपा, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और अजित पवार खेमे की राकांपा के समर्थन से चल रही है।


जनता अब यह प्रश्न पूछने लगी है कि:


जब उपमुख्यमंत्री के बेटे पैर ही पर ही आरोप हों, तो क्या जाँच निष्पक्ष हो सकती है?


क्या सत्ता में शामिल होने के बाद मामलों पर “ढील” दी जा रही है?


यदि यही मामला विपक्ष में रहते हुए उजागर हुआ होता, तो क्या भाजपा सड़क पर उतरकर विरोध नहीं करती?


यह भी आरोप सामने आ रहे हैं कि सत्ता की सौदेबाजी के कारण मामला धीमा पड़ गया है।


🗣️ नेताओं की प्रतिक्रियाएँ


अजित पवार (उपमुख्यमंत्री)

उन्होंने कहा कि पार्थ पवार ने भूमि सौदा करते समय पर्याप्त कानूनी सलाह नहीं ली। उन्होंने यह भी कहा कि “यह राजनीतिक बदले की भावना से किया गया विवाद है।”


देवेंद्र फडणवीस (भाजपा)

फडणवीस ने कहा कि “मामला गंभीर है। कानून के अनुसार कार्यवाही होगी। किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।” लेकिन अब तक ठोस कदम न दिखने से उनकी घोषणा पर भी प्रश्न उठ रहे हैं।


विपक्ष : 

विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार “पवार परिवार की रक्षा” कर रही है। उनका कहना है कि यदि मामला आम नागरिक का होता तो अब तक गिरफ्तारी और कड़ी कार्रवाई हो चुकी होती। विपक्ष ने सरकार से प्रकरण की पूरी जानकारी सार्वजनिक करने तथा उच्चस्तरीय जाँच की माँग की है।


🧑‍🌾 सबसे अधिक नुकसान किसका?


यह भूमि सरकारी और सामुदायिक अधिकार से जुड़ी थी, अतः यह जनता की संपत्ति थी।


यदि सरकारी भूमि का निजीकरण इस प्रकार होता रहा, तो समाज के वंचित वर्ग और भविष्य की पीढ़ियों को इसका नुकसान होगा।


जनता का शासन-तंत्र से विश्वास कम होता है।


❗ जनता के सीधे प्रश्न


“महार वतन” जैसी महत्वपूर्ण सरकारी भूमि निजी हाथों में कैसे चली गई?


पार्थ पवार का नाम सामने आने के बाद भी कठोर कार्रवाई क्यों नहीं?


केवल अधिकारियों पर कार्रवाई और नेताओं पर चुप्पी — यह दोहरा व्यवहार क्यों?


क्या सत्ता में आने से आरोप स्वतः धुल जाते हैं?


42 करोड़ रुपये जमा कराने का आदेश — क्या यह दोषमुक्ति का प्रमाण है या भूल पर पर्दा?


🔚 निष्कर्ष :

यह मामला केवल भूमि हस्तांतरण का नहीं, बल्कि शासन, सत्ता-प्रभाव और राजनीतिक परिवारवाद के दुरुपयोग का प्रतीक बन गया है। यदि सरकार सचमुच भ्रष्टाचार-मुक्त व्यवस्था चाहती है, तो नेता और आम नागरिक, दोनों के लिए कानून समान रूप से लागू होना चाहिए। जब तक सच्चाई पूर्ण रूप से सामने नहीं आती और दोषियों पर कार्यवाही नहीं होती, तब तक यह प्रकरण जनता के मन में अविश्वास और आक्रोश पैदा करता रहेगा।



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