गरीब की भूख बनाम नेता की रैली—कौन जीतेगा यह लड़ाई?

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🔹 गरीब को राशन नहीं, नेता को रैली — कब बदलेगा ये सिस्टम?

🗞️ KhadeBol.in खास रिपोर्ट
📍 नई दिल्ली, 20 मई 2025

📢 गरीबी और राजनीति की असलियत

देश में बढ़ती महंगाई गरीबों की जिंदगी मुश्किल बना रही है। एक ओर लाखों लोग राशन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नेताओं की रैलियों में लाखों करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

🔍 सरकारी आंकड़ों की हकीकत

2024-25 में ₹3,200 करोड़ चुनाव प्रचार और सरकारी विज्ञापन पर खर्च हुए।
80 लाख परिवारों को समय पर राशन नहीं मिला।
✔ मधुबनी (बिहार) की रहमत बीबी कहती हैं: "तीन महीने से राशन कार्ड अपडेट नहीं हुआ, लेकिन चुनाव प्रचार कभी नहीं रुकता।"

जनता के सवाल—कब होगा बदलाव?

✔ क्या गरीबों की ज़रूरतें नेताओं के प्रचार से कम महत्वपूर्ण हैं?
✔ जब चुनाव नहीं होते, तब भी नेताओं के पोस्टर क्यों लगे रहते हैं?
✔ सरकारी योजनाओं का लाभ ज़रूरतमंदों तक सही समय पर क्यों नहीं पहुँचता?

🧾 सरकार की सफाई बनाम जमीनी हकीकत

सरकारी प्रवक्ता का दावा है कि "हमने डिजिटल इंडिया के तहत राशन वितरण में पारदर्शिता लाई है और सभी शिकायतों पर कार्रवाई हो रही है।"
लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है—लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

📈 'रैली तंत्र' का आर्थिक बोझ

नेताओं के लिए रैलियां महज वोट बटोरने का जरिया नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक उद्योग बन चुका है।
2024 में अकेले एक राज्य में चुनाव प्रचार पर ₹800 करोड़ से ज्यादा खर्च हुए।
✔ इन रैलियों में सरकारी संसाधनों, वाहनों और सुरक्षा बलों का भारी इस्तेमाल होता है।
✔ लेकिन इसका सीधा लाभ गरीबों तक कभी नहीं पहुंचता।

🚨 खड़े बोल की मांग—जनता को रैली नहीं, रोटी चाहिए!

✔ सरकारी खर्च का सार्वजनिक ऑडिट किया जाए।
✔ हर वोटर को अपने क्षेत्र के विकास का हिसाब मिले।
✔ चुनावी खर्च पर नियमित निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।

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