अहमदाबाद और जामनगर में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई: क्या है सच?
अहमदाबाद : गुजरात में हाल ही में अहमदाबाद और जामनगर में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के तहत हजारों गरीब परिवारों को बेघर कर दिया गया। प्रशासन इसे "अवैध कब्जे हटाने" की कवायद बता रहा है, लेकिन क्या यह वास्तव में विकास है, या फिर उन लोगों पर संवेदनहीन प्रहार, जो पहले से ही संघर्ष कर रहे थे?
बुलडोज़र से उजड़ती ज़िंदगियाँ
20 मई 2025 को अहमदाबाद नगर निगम (AMC) ने चंदोला झील के किनारे 8,500 से अधिक अवैध संरचनाओं को ध्वस्त किया।
🔹 अभियान के चरण:
- पहले चरण (29 अप्रैल - 1 मई) में 1.5 लाख वर्ग मीटर भूमि खाली कराई गई थी।
- दूसरे चरण में 2.5 लाख वर्ग मीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया गया।
- अभियान में 3,000 पुलिसकर्मियों, 25 SRP कंपनियों और AMC की 50 टीमों को लगाया गया।
- 35 बुलडोज़र और 15 अर्थमूवर मशीनें तैनात की गईं।
BBC हिंदी की रिपोर्ट अनुसार—इस अभियान में कई बांग्लादेशी मूल के लोग चपेट मै आये है। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में इस क्षेत्र से अल-कायदा से जुड़े चार लोगों की गिरफ्तारी के बाद सरकार ने इसे "सुरक्षा अभियान" के तौर पर भी प्रचारित किया। स्थानीय निवासियों ने दावा किया कि उन्हें रातों-रात घर खाली करने का निर्देश दिया गया, और कई लोगों को कोई लिखित नोटिस नहीं मिला। क्या वास्तव में यह अवैध प्रवासियों को हटाने की कार्रवाई थी, या गरीब समुदायों को निशाना बनाने का एक नया तरीका?
सरकार को आगे आकर अब बताना होगा की, यह सब बांग्लादेशी ही थे या गिने-चुने छोड़कर सब भारतीय ही थे। मीडिया मै बांग्लादेशी शब्द का उपयोग कर के, बाकि भावनावो को कहीं दबाया तो नहीं जा रहा? सवाल तो है ही के, इतने बांग्लादेशी है तो इन्हें वापस अपने देश मै भेजिए, लेकिन बाकि भारतीयों का क्या? उनका मजहब देख कर, उन्हें ऐसे ही रस्ते पर छोड़ तो नहीं दिया जायेगा? यह कुछ सवाल है, जो सरकार से सीधे तौर पर जवाब मांग रहे है।
"विकास" के नाम पर गरीबों की बेदखली
जामनगर नगर निगम (JMC) ने रंगमती और नागमती नदियों के किनारे बसे परिवारों को अवैध अतिक्रमणकर्ता बताकर उनकी झोपड़ियाँ तोड़ दीं।
- प्रशासन ने 66,000 वर्ग फीट भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया।
- इस ज़मीन की अनुमानित कीमत लगभग 1 करोड़ रुपये बताई गई।
- 33 परिवारों को पूर्व में नोटिस भेजा गया था, लेकिन बहुतों को कोई वैकल्पिक आश्रय नहीं मिला।
पुनर्वास: क्या यह पर्याप्त है?
AMC ने दावा किया कि—
✔ जो निवासी 1 दिसंबर 2010 से पहले बसे थे, उन्हें EWS आवास मिलेगा।
✔ पात्रता—वार्षिक आय 3 लाख रुपये से कम होनी चाहिए।
✔ 7500 रुपये देकर सरकारी आवास योजना के तहत वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है.
लेकिन सवाल उठता है—क्या ये पुनर्वास योजनाएँ वास्तव में लागू होंगी?
👉 BBC हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, जब प्रभावित लोगों से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि उनके पास 7500 रुपये भी नहीं हैं।
👉 सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकारी घोषणाएँ वर्षों तक लटकी रहती हैं और कई परिवार सड़क पर जीवन बिताने को मजबूर होते हैं।
👉 दस्तावेज़ों की कमी के चलते बहुत से गरीब परिवार पुनर्वास योजना से वंचित रह जाते हैं।
क्या यह विकास है या गरीबों के खिलाफ हिंसा?
जब सरकारें "शहरी सौंदर्यीकरण", "स्वच्छता" और "विकास" की बात करती हैं, तो यह सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन जब हजारों बच्चों को स्कूल छोड़कर फुटपाथ पर सोना पड़े, जब माँ-बाप अपने घर के सामान को मलबे में दबता देखेंगे, जब कमजोर तबकों को "अवैध" बताकर हटाया जाएगा—तो यह विकास नहीं, बल्कि मानवता पर प्रहार कहलाएगा। 👉 यदि सरकारें सच में मानवता के साथ खड़ी हैं, तो पुनर्वास पहले और बुलडोज़र बाद में आना चाहिए।
निष्कर्ष:
यह सिर्फ अतिक्रमण हटाने की कहानी नहीं है, यह गरीबों के अधिकारों और सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाने वाला विषय है।
✔ क्या गरीबों को पुनर्वास की गारंटी मिलनी चाहिए?
✔ क्या धार्मिक और जातीय पहचान को आधार बनाकर ये कार्रवाई हुई?
✔ क्या भविष्य में ऐसे अभियानों को और पारदर्शी बनाया जाएगा?
लेखक: SK Hajee
यूट्यूब चैनल: [SK Hajee Official]
(स्वतंत्र पत्रकारिता, सामाजिक न्याय, और राजनीतिक विश्लेषण)
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